आइए जानते हैं, वास्तु शास्त्र के अनुसार दोषपूर्ण दिशाएं और उनसे होने वाले नकारात्मक प्रभाव

वास्तु शास्त्र के अनुसार दोषपूर्ण दिशाएं और उनसे होने वाले नकारात्मक प्रभाव

वास्तुशास्त्र में दिशाओ का बहुत महत्व है। दिशाओं को अनदेखा करके किया गया गृह-निर्माण घर में रहने वाले सदस्यों को मुसीबत में डाल सकता है। मसलन, घर की दक्षिण दिशा में खिड़कियां और दरवाजे होने से दुश्मन का भय बना रहता है। रोगों की हमले की आशंका रहती है। घर की दक्षिण दिशा में अगर खिड़कियां दरवाजे हो, तो उन्हें हमेशा के लिए बंद कर देना चाहिए। अन्यथा शत्रु भय बना रहता है और रोगों का खतरा भी पैदा हो जाता है।

आइए जानते हैं, वास्तु शास्त्र के अनुसार दोषपूर्ण दिशाएं और उनसे होने वाले नकारात्मक प्रभाव

उत्तर दिशा: यह दिशा कुबेर की भांति स्थिरता की सूचक है। विद्या-अध्ययन, चिंतन-मनन या कोई भी ज्ञान संबंधी कार्य उत्तर दिशा की ओर मुख करके करने से लाभ होता है। अगर भवन की खिड़कियां या दरवाजे उत्तरमुखी होंगे, तो भवन धन-धान्य से भरा पूरा रहता है। वास्तु शास्त्र में इस दिशा का विशेष महत्व है। यह दिशा मातृसूचक है। इस दिशा में जल तत्व की का प्रभाव होता है। रात्रि में ध्रुव तारा इसी दिशा में निकलता है। इस दिशा में खाली स्थान होना चाहिए। यह दिशा धन, सुख-समृद्धि और जीवन में सभी प्रकार के सुख देने वाली है।

उत्तर-पूर्व दिशा: उत्तर पूर्व को मिलाने वाले कौन ईशान कोण कहते हैं। दोनों दिशाओं के मध्य होने के कारण इस दिशा को पवित्र माना गया है। यह दिशा साहस, विवेक, बुद्धि-ज्ञान और धैर्य प्रदान करने के साथ-साथ सभी प्रकार के कष्टों से भी मुक्ति दिलाने वाली है। यदि यह दूषित या दोषपूर्ण होती है, तो घर में तरह तरह के कष्ट उत्पन्न हो जाते हैं और बेवजह की घटनाएं घटित होने लगती हैं। तना-तनी का माहौल सा बन जाता है। घर में रहने वालों की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है।

पूर्व दिशा: यह दिशा अग्नि तत्व को प्रभावित करती है। यह पितृ-स्थान की भी सूचक है। इस दिशा को बंद कर देने पर सूर्य किरणों का घर में प्रवेश रुक जाता है, जिसके कारण शरीर में तरह-तरह की व्याधिया उत्पन्न हो जाती है। मान-सम्मान की हानि होती है और धन-धान्य की वृद्धि नहीं हो पाती।

दक्षिण-पूर्व दिशा: दक्षिण-पूर्व दिशा को मिलाने वाला कौन आग्नेये कोण कहलाता है। इस दिशा में अग्नि तत्व का प्रभुत्व माना गया है। स्वास्थ्य से इसका विशेष संबंध है। यदि यह दिशा दूषित या दोष पूर्ण हो, तो भवन में निवास करने वाले लोगों का स्वास्थ्य अक्सर खराब रहता है। लोगों का आना-जाना लगा रहता है। इसके साथ ही आग लग जाने का भय भी बना रहता है।

दक्षिण दिशा: इस दिशा का तत्व पृथ्वी को माना गया है। यह धैर्य और स्थिरता का प्रतीक है। यह बुराइयों का नाश करने वाली दिशा है। यह सभी प्रकार की अच्छी बातें सूचित करती है। इस दिशा से शत्रु भय बना रहता है। यह रोग की कारक भी है। भवन-निर्माण के समय इस दिशा को बंद रखना जरूरी होता है। वास्तु दोष निवारण के लिए इस दिशा में खुलने वाली खिड़कियों और दरवाजों को बंद कर देना चाहिए।

दक्षिण-पश्चिम दिशा: दक्षिण और पश्चिम दिशा को मिलाने वाला कोण नेतृत्व कोण कहलाता है। यह शत्रु भय नाश करने वाली दिशा है। इसके द्वारा मनुष्य के चरित्र और उसकी मृत्यु का विचार किया जाता है। इसके दोषपूर्ण होने से इस में रहने वालों का चरित्र कलुषित हो जाता है। उन्हें सदा शत्रुओं का है रहता है और आकस्मिक दुर्घटना होने की आशंका रहती है।

पश्चिम दिशा: यह दिशा वायु तत्व को प्रभावित करती है। अगर घर का द्वार पश्चिम में है, तो इसमें रहने वाले प्राणी का मन सदैव चंचल बना रहता है। उसे किसी भी काम में सफलता नहीं मिलती। बच्चों की शिक्षा में रुकावट आती है। मानसिक तनाव निरंतर बना रहता है। ऐसे मकान में धन कभी नहीं ठहरता। उन्नति के लिए गृह स्वामी को अत्यधिक परिश्रम करना पड़ता है।

उत्तर-पश्चिम दिशा: उत्तर-पश्चिम दिशाओं को मिलाने वाला कोण वायव्य कोण कहलाता है। यह वायु का स्थान माना गया है। यह दिशा दीर्घायु शक्ति और स्वास्थ्य प्रदान करती है। अगर यह दोषपूर्ण हो, तो मित्र भी शत्रु बन जाते हैं। शक्ति का ह्रास होता है और आयु क्षीण हो जाती है

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